Monday, 16 April 2018

तैरकर, डूबकर, हारकर आ गए
हमको जाना कहाँ था किधर आ गए 

हमसे ख़ुद को छुपाये तो रक्खा बहुत
आईने में मगर हम नज़र आ गए 

उसने अपनी कसम देके रुखसत किया 
अश्क संभले न थे हम मगर आ गए 

जा चुके थे हक़ीक़त में जो छोड़कर 
ख्वाब देखा कि वो लौटकर आ गए 

ईद के दिन मेरी ईद हो जायेगी
रु-ब-रु ईद के दिन अगर आ गए  

गाँव रोता रहा रुखसती पे तो क्या 
छोड़ आये उसे आह भर आ गए  

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