जो तुम ग़रूर से अपने निकल सको तो चलो
रहो न बर्फ़ से जमकर पिघल सको तो चलो
ये ज़िन्दगी कई शक्लों में तुमको ढालेगी
हरेक शय में अगर तुम भी ढल सको तो चलो
जो शख़्स छोड़ गया तुमको राह में तनहा
बग़ैर उसके अगर तुम भी चल सको तो चलो
करेगी मौत ही इक रोज़ क़ैदे ग़म से रिहा
(करेगी मौत हमें क़ैदे बन्दे ग़म से रिहा )
इसी ख़याल से तुम भी बहल सको तो चलो
किसी शहीद की बेवा ने आंसुओ से कहा
गिरो न आँख से मेरी संभल सको तो चलो
रदीफ़ो काफियाबंदी ग़ज़ल नहीं साहिब
सुखन की राह अगर तुम बदल सको तो चलो
(मिज़ाजे शेर अगर तुम बदल सको तो चलो )
(मिज़ाजे शेर अगर तुम बदल सको तो चलो )
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