मैं उसके प्यार
में कुछ खो सका न पा ही सका
छुपा भी पाया न
उससे, कभी बता ही सका
समझ न आया कभी
दिल ये चाहता क्या है
न याद आया वो
हरपल न मैं भुला ही सका
न जी सका कोई
रांझा न हीर मिलजुलकर
कोई न उनको जुदा
करके फिर मिला ही सका
अजब चराग़ है ये
इश्क़ भी कि जिसकी लौ
जला सका न कोई
हाथ इसे बुझा ही सका
तवील रात, हवा
सर्द, आख़िरी सिगरेट
मैं पी सका न जला
के इसे बुझा ही सका
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