ज़िंदगी से यूँ गिला कुछ कम नहीं है
क्या हुआ जो वो मेरा हमदम नहीं है
जिंदगी ही बोझ बनकर रह गयी है
सिर्फ तेरे जाने का ही ग़म नहीं है
लोग रोये फूट कर मैयत पे मेरी
आँख उनकी देखिये पुरनम नहीं है
यूँ कभी बादे सबा चलती है अब भी
ज़ुल्फे बरहम में मगर वो ख़म नहीं है
शख़्सियत उसकी सियासत से जुडी है
और उसमे कोई पेंच-ओ-ख़म नहीं है
एक से हैं ज़ात, मज़हब, धर्म सारे
हाथ में मेरे कोई परचम नहीं है
क्या हुआ जो वो मेरा हमदम नहीं है
जिंदगी ही बोझ बनकर रह गयी है
सिर्फ तेरे जाने का ही ग़म नहीं है
लोग रोये फूट कर मैयत पे मेरी
आँख उनकी देखिये पुरनम नहीं है
यूँ कभी बादे सबा चलती है अब भी
ज़ुल्फे बरहम में मगर वो ख़म नहीं है
शख़्सियत उसकी सियासत से जुडी है
और उसमे कोई पेंच-ओ-ख़म नहीं है
एक से हैं ज़ात, मज़हब, धर्म सारे
हाथ में मेरे कोई परचम नहीं है
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